अनित्य

जिस तत्व की उत्त्पति है और तत्पश्चात् नाश है, वह तत्व अनित्य है।

 

संसार में जितने प्रकार के भी प्राणी (जड़-चेतन) है, उनकी उत्त्पति और नाश है। इसलिये सभी प्राणी अनित्य है।

उसी प्रकार मनुष्य के अन्तःकरण में उत्त्पन होने वाले भाव अनित्य है। मनुष्य को कभी सुख का भाव होता है और कभी दुःख का।

 

श्रीमद् भगवद् गीता में अनित्य सम्बंधित वर्णन।

 

अध्याय २ श्लोक १४

अर्जुन युद्ध आरम्भ होने से पूर्व अपने सम्बन्धियों को देख कर शोक करने लगते है। शोक का कारण है, युद्ध में उनका मृत्यु को प्राप्त होना।

इस विषय पर भगवान श्रीकृष्ण कहते है कि संसार के सभी प्राणीओं के समान यह लोग का अंत होना निश्चित है। कारण कि संसार के प्राणी, पदार्थ और परिस्थिति अनित्य है।

अतः वह सभी विषय जो अनित्य है, उनको महत्व नहीं देना चाहिये। अर्थात शोक नहीं करना चाहिये।

 

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

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