अप्रमेय पद परमात्मा के विषय में प्रयोग होता है। कारण कि परमात्मा, परमात्मतत्व, जो इस सृष्टि-संसार का आधार है, वह बुद्धि और इन्द्रियाँ के द्वारा जाना अथवा प्रमाणित नहीं किया जा सकता।
श्रीमद् भगवद् गीता में ‘अप्रमेय’ पद अध्याय २ श्लोक १८ में आया है।
संसार में जितने भी पदार्थ, विषय है, उनको इन्द्रियों और बुद्धि के द्वारा जाना जा सकता है। जो विषय मनुष्य के आँखों से दूर है उसको दूरबीन के द्वारा देखा और जाना जा सकता है। जो विषय अति सूक्षम है उसको सूक्ष्मदशंक यंत्र (Microscope) के द्वारा देखा अथवा जाना जा सकता है।
आज का विज्ञान यह जनता है कि कोई भी पदार्थ सहस्त्र अति सूक्ष्म अणुओं के संघठन से बना होता है। पदार्थ को तो मनुष्य अपने नेत्रों से देख सकता है। परन्तु पदार्थ के अणु को अगर देखना हो तो उसके लिये सूक्ष्मदशंक यंत्र प्रयोग में आता है।
‘कौन‘ प्रश्न वाचक शब्द उस विषय के साथ लगता है जिसको देखा अथवा जाना जा सकता है। जिस का कुछ आकार हो। क्योंकि परमात्मा को न देखा अथवा न जाना जा सकता, इसलिए परमात्मा के साथ ‘कौन’ प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता।
आज का आधुनिक विज्ञान यह तो निश्चित रूप से जानता है की प्रत्येक पदार्थ का अति सूक्ष्म अंश उसका अणु है। उस अणु के होने का जो कारण है उस पर शोध अभी चल रही है। अभी निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता।
परन्तु सनातन धर्म संस्कृति के विज्ञानिको ने सहस्त्रो वर्ष पूर्व ही परमात्मा को जाना है। उनके द्वारा लिखे गये ग्रन्थों के अनुसार परमात्मा वह तत्व है जो किसी भी पदार्थ के अणु के होने का भी कारण है।
प्रत्येक पदार्थ के अणु का एक विशेष गुण है जो उसको अन्य पदार्थों के अणु से अलग करता है। परन्तु संसार में जितने भी प्रकार के अणु है, उन सबके होने का कारण एक ही है, जिसको परमात्मतत्व कहते है। सभी पदार्थों की उत्त्पत्ति परमात्मतत्व से ही हुई है।
क्योकि सभी प्रकार के अणु का मूल तत्व परमात्मतत्व है, इसलिये परमात्मतत्व के स्तर पर परमात्मतत्व का कोई गुण नहीं रहता।
इसलिये परमात्मतत्व को निर्गुण कहा गया है।
किसी भी विषयों को जानने के लिये एक द्रष्टा रूपी यंत्र (देखने वाला) चाहिये। अर्थात दृश्य और द्रष्टा जब अलग-अलग होंगे तभी दृश्य जानने में आता है। मनुष्य संसार को देख पाता है क्योंकि वह संसार से अलग है। अगर वह कोई यन्त्र प्रयोग में लाता है, तब भी वह यन्त्र उस विषय से अलग होता है।
परन्तु परमात्मतत्व, मनुष्य की आँख, एवं बुद्धि के होने का कारण है। अतः आँखे स्वयं के तत्व को कैसे देखेगी और बुद्धि स्वयं के तत्व को कैसे जानेगी? अगर कोई यन्त्र भी प्रयोग में लाया जाता है, तब भी वह परमात्मतत्व को नहीं जान सकता क्योंकि, उस यन्त्र के होने का कारण भी परमात्मतत्व है।
जब तक दृश्य और द्रष्टा अलग-अलग नहीं होंगे, तब तक दृश्य को जाना नहीं जा सकता।
इसलिये परमात्मतत्व को अप्रमेय कहते है।
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