आसक्ति

संसारिक विषयों के प्रति प्रियता होना, विषय में सुख देखना, जीवन के होने का कारण देखना, विषयों में आसक्ति है।

 

मनुष्य जब शरीर से ममता करता है और शरीर का सुख संसारिक विषयों की प्राप्ति में देखता है। तब मनुष्य की संसारिक विषयों के प्रति आसक्ति कही जाती है। इसको ही सम्बन्ध जोड़ना कहते है।

मनुष्य जब संसार और संसार के विषयों के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ता है, तब वह सुख-दुःख रूपी चक्र के बन्धन में बंध जाता है। संसार में आसक्ति होना ही मनुष्य के पतन का मुख्य कारण है।

यहाँ इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि और अहंकार, सभी शरीर पद में आ जाते है।

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

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अध्याय