ज्ञानयोगव्यवस्थितिः यह संस्कृत शब्द का वर्णन अध्याय १६ श्लोक १ में हुआ है।
परमात्मतत्त्व का जो ज्ञान (बोध) है, उसको प्राप्त करने के लिये योग साधना करना और उसको सिद्ध करके उसमे स्थित होना ज्ञानयोगव्यवस्थितिः है।
ज्ञान + योग + व्यवस्थितिः से बनता है ज्ञानयोगव्यवस्थितिः। और इस का अर्थ है ज्ञान योग में दृढ़ स्थिति। यहाँ ज्ञान में दृढ़ स्थिति का अर्थ है कि इस स्थिति को प्राप्त हो मनुष्य पुनः संसार में आसक्त नहीं होता।
अतः मनुष्य जब योग में स्थित हो जाता है, तब उसकी स्थिति ज्ञानयोगव्यवस्थितिः पद से कही गई है। यह योग में स्थित होने की दृढ़ स्थिति है और इस स्थिति को प्राप्त साधक दैवी सम्पदा को प्राप्त है, ऐसा कहा जा सकता है।
श्रीमद भागवत गीता का सम्पूर्ण प्रकरण योग में स्थित होने के लिये है।
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